id="postTitle" वसीयत कैसे बनाएं, वसीयत करने की प्रक्रिया, कैसी होनी चाहिए वसीयत


क़ानून} राहुल जोशी, अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय

वसीयत बनाना कितना जरूरी है यह हम जानते हैं। परंतु कुछ चीज़े ऐसी भी हैं जिनके बारे में शायद अभी भी न जानते हों।
आइए, इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को थोड़ा बारीकी से समझते हैं...




वसीयत के बारे में कितना जानते हैं?

मृत्यु के बाद अपनी जायदाद किसी को सौंपने का फ़ैसला अपने जीते जी लेना वसीयत कहलाता है। वसीयत करने वाला व्यक्ति
लिखित में बताता है कि मौत के बाद उसकी जायदाद का कौन-सा हिस्सा किसको मिलेगा। इससे उस व्यक्ति के जाने के
बाद संपत्ति और धन को लेकर पारिवारिक झगड़े नहीं होते और बाहरी व्यक्ति द्वारा कब्जा करने का अंदेशा भी नहीं होता। पर लिखी
गई वसीयत कितनी प्रामाणिक और सुरक्षित है, कैसी होनी चाहिए जैसी तमाम बातों के बारे में जानना भी जरूरी है।




कैसी होनी चाहिए वसीयत ?

वसीयत बनाते समय उसे तीन हिस्सों में बांटना चाहिए...
पहला भाग..
• वसीयतकर्ता का नाम, परिवार के सभी सदस्यों और
वसीयतकर्ता के पास कितनी संपत्ति है उसका पूरा
विवरण।

• उस व्यक्ति का विवरण जिसके नाम पर वसीयतकर्ता अपनी
संपत्ति आधिकारिक तौर पर देना चाहता है।

• उत्तराधिकारी शख़्स का वसीयतकर्ता से क्या संबंध है, वो
उसे कितने समय से जानता है और वसीयतकर्ता उस व्यक्ति
को संपत्ति क्यों देना चाहता है, उसका विवरण ।

• उस व्यक्ति का विवरण जिसे वसीयतकर्ता अपनी संपत्ति नहीं
देना चाहता। उसका कारण और अन्य जरूरी जानकारियां।

दूसरा भाग....
वसीयतकर्ता इस बात का उल्लेखन करे कि उसने वसीयत
को अच्छी तरह पढ़ लिया है। उसे वहां हस्ताक्षर भी करने होंगे।
इसके बाद गवाह को भी वकील के सामने हस्ताक्षर करने होंगे।

तीसरा भाग....
वसीयत में शामिल होने वाले गवाहों के नाम और उनकी पूरी
जानकारी।




• गवाह की विश्वसनीयता....
वसीयत बनाते समय किसी को भी गवाह बनाया जा सकता है।
भारतीय क़ानून के अनुसार गवाह की उम्र 18 वर्ष और उसका
मानसिक तौर पर स्वस्थ होना जरूरी है। कोई व्यक्ति कितना
विश्वसनीय है, इसका चुनाव वसीयतकर्ता को करना है।

इसे रखना कहां चाहिए?....
चाहिए। वसीयतकर्ता वसीयत अपने पास रख सकता है, वो
वसीयत बनाने के बाद इसे किसी भी सुरक्षित जगह पर रखना
गवाह जिनके सामने वसीयत बनाई गई है या किसी भी ऐसे
व्यक्ति को रखने के लिए दे सकता है जिस पर उसे भरोसा है।

वसीयत पढ़े जाने में वकील की भूमिका...
जब हिस्सेदारों के सामने वसीयत पढ़ी जाती है तो वकील की
ऐसी कोई भूमिका नहीं होती है। वकील ही वसीयत पढ़कर
सुनाए, ऐसा जरूरी नहीं है। लेकिन किसी क़ानूनी पक्ष या किसी
स्पष्टीकरण के लिए वकील से संपर्क किया जा सकता है।

वसीयत में नामांकन और उसका प्रमाण...
कई बार लगता है कि वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद नामांकित
सदस्यों के अलावा कोई और संपत्ति पर दावा कर सकता
है। ऐसा कोई क़ानूनी दस्तावेज नहीं है जो वसीयतकर्ता द्वारा
लिखी गई जानकारी को सौ प्रतिशत साबित कर सके। जब
कोई व्यक्ति अपनी वसीयत बनाता है तो वह कौन-सा हिस्सा
किसे देना चाहता है, किस व्यक्ति को कितनी संपत्ति दे रहा है,
किसके हिस्से में अचल संपत्ति आएगी और कौन जमीन की
हिस्सेदारी लेगा, ये सारा विवरण वसीयत में स्पष्ट रूप से होना
चाहिए। वसीयतकर्ता द्वारा जो जानकारी वसीयत में दी जाएगी
वो क़ानून की नजर में वैध मानी जाती है। इसके बाद न कोई
इस पर सवाल कर सकता है और न कोई दावा।




वसीयत करने की प्रक्रिया
भी समझ लें...
वैसे वसीयत का पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है
लेकिन कराने की सलाह दी जाती है। वसीयत बनाने के लिए
किसी भी तरह की स्टाम्प ड्यूटी या स्टाम्प पेपर की आवश्यकता
नहीं होती। किसी भी तरह का शासकीय शुल्क भी नहीं लगता।

आमतौर पर लोग कोरे कागज पर वसीयत लिखते हैं
और नीचे हस्ताक्षर कर देते हैं। अगर कोई व्यक्ति आधिकारिक
तौर पर वसीयत बनाना चाहता है तो वह 100 रुपये के स्टाम्प
पेपर पर इसे बना सकता है। वसीयत में सारी जानकारी शामिल
करने के बाद पंजीकरण कराने के लिए वसीयतकर्ता को सब-
रजिस्ट्रार के कार्यालय में गवाहों के साथ जाना होगा। अलग-
अलग जिलों में रजिस्ट्रार होते हैं जो वसीयत का पंजीकरण
करने में मदद कराते हैं।

दस्तावेज़ के तौर पर वसीयतकर्ता और गवाहों की फोटो
और पहचान पत्र आवश्यक होता है। पंजीकरण के बाद यह
वसीयतं क़ानूनी प्रमाण माना जाता है।

नीचे दिए 🖇️ लिंक से पूरी जानकारी की pdf download ⬇️ करें..

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हालांकि भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 (संशोधन)
के अनुसार कृषि संबंधी भूमि या व्यापार की वसीयत बनाने के
लिए पंजीकृत करवाना अनिवार्य है।

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